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अनुभूति में डॉ. टी. महादेव राव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
हादसा और मुंबई कुछ कविताएँ

गीतों में-
आशा गीत
क्यों नहीं ये अश्रु बहते
प्रीत के मधुमास हो गए
भामिनी तुम
वृष्टि का गीत

  हादसा और मुंबई – दस कवि‍ताएँ

 

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बच्चे के हाथ में
दाने चुगता हुआ कबूतर
आवाज़ गोलि‍यों की
हलचल नहीं बच्चे में
ठि‍ठका हुआ है कबूतर
मंडरा रहे हैं आसपास गि‍द्ध
डरा हुआ है कबूतर



मेरा मि‍त्र
होटल के कमरे में बुनता रहा
कल के हसीन सपने
भवि‍ष्य के महल
हो गया सपनों सा
वह भी अमूर्त
पहचान बड़ी थी उसकी
आज पहचानी नहीं जा रही है
उसकी लाश

 



कि‍सी को लेने
बि‍दा करने कि‍सी को
कहीं जाने के लि‍ये
कहीं से आकर
तय कर लि‍या है सभी ने
एक ही रास्ता‍
सभी को दे गया मौत
एक ही मंज़ि‍ल
सीएसटी पर ज़ि‍न्दगी
हो गई ओझल

 



लगातार खबरें आ रही हैं
कि‍ लापता हैं लोग
बढ़ रही है भीड़ मुर्दाघर में
ढूँढते रहे हैं लोग लाशों को
उनसे जुड़े अपने रि‍श्तों को
अदद पहचान को
सारा देश गरम है
आगजनी और गोलाबारी से
छलनी है मानव का सीना

 



टेलीफोन की घंटी
मौत की खबर
मस्तिष्क में सन्नाटा
पक्षाघात से ग्रस्त पल
सुन्नघ पड़ते दि‍माग
नि‍श्शडब्द‍ बि‍लखता हृदय



जो स्वर सुना था कल रात को
आज स्वारहीन हो गया
सुन्दर देह और मन
अस्तिव‍त्वाहीन हो गया
कुत्सिा‍त कुवि‍चार कि‍ भरे
लोगों में भय और कुंठा
कुचलकर सभी भावनाओं को
उन लाशों पर आसीन हो गया

 



डर से भागते घायल लोगों को
कैमरे में कैद करते चैनल
जलती इमारतों की आग में
रोटी सेंकते राजनीति‍ज्ञ
लाशों के प्रश्नोंत को अनसुना कर गये
लोग नये हादसों के अंदेशे लगाने लगे
हम कहां हैं कहां जा रहे हैं
अनुत्तरि‍त है मानवता का प्रश्न

 



समुद्र दस्युदल की खबर
अभी पड़ रही थी ठंडी
समुद्री रास्ते से आकर आतंकवाद ने
कर दि‍या साबि‍त
कि‍ महफूज़ नहीं कोई भी रास्ता
हवा हो पानी हो या ज़मीन
वह रास्ता बना रहा है
हमारी शांति‍ सद्भाव सहि‍ष्णुतता को
ठेंगा दि‍खा रहा है

 



कि‍सी कोने में मन के
कि‍ जीवि‍त है मेरा मि‍त्र
तूफान में माटी के दि‍ये सा
टि‍मटि‍मा रहा है
सुनाई पड़ती है मोबाइल की घंटी
आधी रात को आंधी की तरह
शून्य कर दि‍या है तीन शब्दों ने
मेरे अस्ति‍त्व को
पंचेंद्रि‍यों को नि‍ष्क्रिय बना गया है
चार दि‍न पहले ही हुई थी
उससे बातचीत
उसकी हँसी
उसकी हाज़ि‍र जवाबी
उसकी शायरी
सब कुछ तीन शब्दों में
खत्म हो गई है सि‍मटकर
’’वह नहीं रहा’’
 

१०
लहरों का शोर
हो गया साठ घंटों तक अनसुना
टकराकर तट से वापस
लौटने से भी कतरा रहा है सागर
कि‍नारे की इमारतों में आगजनी
गोलीबारी का भयावह स्वम
लोगों के आक्रंदन
सड़कों पर भीड़ के चेहरे पर
असुरक्षा का प्रश्न
बि‍खरा पडा है बेतरतीब हर क्षण
वातावरण में

१३ दिसंबर २०१०

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