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अनुभूति में डॉ० तारा प्रकाश जोशी की रचनाएँ-

गीतों में-
कोई और छाँव देखेंगे
तेरे मेरे बीच
मेरे पाँव तुम्हारी गति हो
मेरा वेतन ऐसे रानी

संकलन में-
मातृ भाषा के प्रति- हिंदी में बोलूँ

 

तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच कहीं है
एक घृणामय भाईचारा
सम्बन्धों के महासमर में
तू भी हारा मैं भी हारा

बँटवारे ने भीतर-भीतर,
ऐसे-ऐसी डाह जगाई
जैसे सरसों के खेतों में,
सत्यानासी उग-उग आई
तेरे मेरे बीच कहीं है
टूटा-अनटूटा पतियारा

अपशब्दों की बंदनवारें,
अपने घर हम कैसे जायें
जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनायें
तेरे मेरे बीच कहीं है
भूला-अनभूला गलियारा

आहत सोये जर्जर जागे
जीवन ऐसी एक व्यथा है
जैसे किसी फटी पोथी में
लिखी हुई प्रतिशोध कथा है
तेरे मेरे बीच कहीं है
झूठा-अनझूठा हरकारा

बचपन की स्नेहिल तस्वीरें
देखें तो आँखें दुखती है
जैसे अधमुरझी कलियों से
ढलती रात ओस झरती है
तेरे मेरे बीच कहीं है
बूझा-अनबूझा उणियारा

जय का तिमिर महोत्सव तेरा
क्षय का अग्नि-पर्व है मेरा
तेरे घर शापों का डेरा
मेरे घर शापों का फेरा
तेरे मेरे बीच अभी है
डूबा-अनडूबा उजियारा ।

२७ जनवरी २०१४

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