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मेरा वेतन ऐसे
रानी
मेरा वेतन ऐसे रानी
जैसे गर्म तवे पर पानी
एक कसैली कैन्टीन से
थकन उदासी का नाता है
वेतन के दिन-सा निश्चित ही
पहला बिल उसका आता है
हर उधार की रीत उम्र-सी
जो पाई है सो लौटानी
दफ्तर से घर तक फैले हैं
ऋणदाता के गर्म तकाजे
ओछी फटी हुई चादर में
एक ढकूँ तो दूजी लाजे
कर्जा लेकर कर्ज चुकाना
अंगारों से आग बुझानी
फीस ड्रेस कॉपियाँ किताबें
आँगन में आवाजें अनगिन
जरूरतों से बोझिल उगता
जरूरतों में ढल जाता दिन ।
अस्पताल के किसी वार्ड-से
घर में सारी उम्र बितानी
ढली दुपहरी सी आई हो
दिन समेट टूटे पिछवाड़े
छाया-सी बढती उधड़न से
झाँक रहे हैं अंग उघाड़े
तुझको और दिलासा देना
रिसते घावों कील चुभानी
ये अभाव के दिन लावे-से
घुटते तेरे मेरे मन में
अग्निगीत बनकर फैलेंगे
गाँवों शहरों में, जन-जन में
जिस दिन नया सूर्य जनमेगा
तेरे जूड़े कली लगानी
२७ जनवरी २०१४ |