परदादा की चौखट
चहकी चिड़िया
फिर भिनसारे
कागा बोला फिर मुँडेर पर
गलफाँसी को कौन निबारे!
खुली किवरियाँ
दादा बैठे
परदादा की चौखट दाबे,
लिए खतौनी
मिला रहे हैं
ब्याज-त्याज के कर्ज़-कुलाबे,
अंधाधुंध में
जेठ मास की
जेठी बिटिया क्वाँरी रह गई
सूरज करता वारेन्यारे!
बोहनी-बट्टा
बाज़ारों में
घटत-बढ़त की सीढ़ी नापे,
विज्ञापन की
मुखर इबारत
घुन खाई छाती को चापे,
मारकेश आया
सिर ऊपर
ड्योढ़ी बैठी सुने सुहागिन
जबर जोतिषी बचन उचारे!
१८ फरवरी २००८
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