अनुभूति में श्यामसुंदर
दुबे
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आभार
परदादा की चौखट
बदले कायदे
मानुष चौपाया
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बदले कायदे
वादियों से बीनकर
लाए हुए दिन
जेब में रखकर न निकलो
कुछ समय से
भीड़ वाली सड़क के
कायदे बदले हुए हैं!
रौंदते हैं बूट भारी
छातियाँ इस नगर की
बहुत दिन से
बहस में उलझा हुआ दरबार,
मशीनों की दरातों में
फँसे हैं फूल के किस्से
बचा है वसंत
सिर्फ़ फटा हुआ इश्तहार,
बोलियाँ ईमान की लगतीं
तिजारत आदमी की हो रही
बाज़ार के फिलहाल कुछ तो
कायदे बदले हुए हैं!
अंतःपुरों में कैद हैं
चंदन सनी चंचल हवाएँ
धुआँ उगला ज़हर पीते हैं
हमारे फेफड़े,
माहौल का अस्तित्व
पंजों में कसे हैं
सूखते तालाब वाले
शक्तिशाली केकड़े,
जो निगाहों से गिरे थे
वे ही प्यादे आजकल
पा रहे हैं फरज़ियों के-
फ़ायदे, बदले हुए हैं!
१८ फरवरी २००८
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