नकली हस्ताक्षर से
सूरज को भोर छले
नकली हस्ताक्षर से!
सहमी मछलियाँ हैं
घडियाली चाप से
चाहती निकलना अब
जल की परिमाप से
पीढियाँ शिकार हुई
तब जाकर जाना है
आँखों को लोर छले
नकली हस्ताक्षर से
साँसों के सोते में
कीचड़-सी वेदना
स्वप्न की पंखुरियों को
नोच रही अनमना
छोड़ी मंझधार किंतु
साहिल कब छोडा है
लहरों को कोर छले
नकली हस्ताक्षर से!
कैद हैं सलाखों में
किरनों की क्योरियाँ
कसमस-सी चाभी की
तनी-तनी त्योरियाँ
शायद उन्मुक्त अभी
हो सके न रागकंठ
सरगम को शोर छले
नकली हस्ताक्षर से!
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