अनुभूति में शंभुनाथ सिंह की रचनाएँ-
गीतों में-
जीवन लय
देखेगा कौन
लोग
समय की शिला
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लोग
सोन हँसी हँसते हैं लोग
हँस हँसकर डसते हैं लोग
रस की धारा
झरती है विष पिये अधरों से
बिंध जाती भोली आँखें विष कन्या की नज़रों से
नागफनी की बाहों में
हँस हँसकर कसते हैं लोग
चुन दिये गये हैं
जो लोग नगरों की दीवारों में
खोज रहे हैं अपने को वे ताज़ा अखबारों में
अपने ही बुने जाल में
हँस हँसकर फँसते हैं लोग
जलते जंगल
जैसे देश और कत्लगाह से नगर
पागलखानों सी बस्ती चीरफाड़ जैसे घर
भूतों के महलों में
हँस हँसकर फँसते हैं लोग
रौंद रहे हैं
अपनो को सोये सोये से चलते से
भाग रहे पानी की ओर आगजनी में जलते से
भीड़ों के इस दलदल में
हँस हँसकर धँसते हैं लोग
हम तुम वे
और ये सभी लगते कितने प्यारे लोग
पर कितने तीखे नाखून रखते हैं ये सारे लोग
अपनी खूनी दाढ़ी में
हँस हँस कर ग्रसते हैं लोग
१५ अक्तूबर २०००
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