अनुभूति में
शचीन्द्र भटनागर
की रचनाएँ -
गीतों में-
अवकाश नहीं
चाहत
झुलसी धरती
फगुनाए दिन
याद
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चाहत
दिवस मास बीतते रहे
रंग और गुलाल के लिये
चाहत थी
सुबह दोपहर कभी
रंगभरा ! क्षण हमें मिले
चट्टानों बीच
किसी संधि में
कोई मनहर सुमन खिले
पर कोमल दूब छोड़, हम
भागे शैवाल के लिये
होता है रक्त और गुलाल का
बाहर से
रंग एक सा
किंतु
एक विषभरा भुजंग है
एक प्यार में रचा बसा
चलो, दृष्टि स्वच्छ हम करें
तीक्ष्ण अंतराल के लिये
हम न कभी तपकर
आकाश में छाँहभरी बदली बने
खिल देख-देख
खिलखिला सकें
हम न कभी वह कली बने
और समाधान टल गए
एक और साल के लिये
२३ सितंबर २०१३
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