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ओ हवाओं थाम लो
हम भटकते बादलों को
ओ हवाओं थाम लो
इन्द्रधनुष के रंग छिपाए
ढेरों पानी भर कर लाए
मजदूरों सा बोझ उठाये
दिशाहीनता से घबराए
हम सागर के वंशज होकर
फिर भी हैं गुमनाम लो
गो समुन्दर से रचे हैं
खारेपन से पर बचे हैं
हम नहीं अलगाववादी
चिन्तनों के चोंचलें हैं
धरती को शीतल करने का
हम से कोई काम लो
मीठे जल का कोश हैं हम।
स्वार्थ से निर्दोष हैं हम।
त्याग का संतोष हैं, पर
द्वंद्व में आक्रोश हैं हम।
सृजन का सुख हैं, मगर हम
प्रलय को बदनाम लो। १६ जनवरी
२०१२ |