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अनुभूति में राहुल शिवाय की रचनाएँ— 

गीतों में-
आग शहर में फैल रही है
झूल जाओ प्राण तज दो
तेरे आने से
दीवारों में बँटा हुआ अब
पतझड़ बीत गया है
बाबू जी का खत आया है
सिर्फ बाँचने लगे समस्या
हम अपनों के मारे
 

 

तेरे आने से

तेरे आने से फिर हँसना सीख लिया है

पोर-पोर में सरसों के ज्यों
फूल खिले
जैसे सूखी तुलसी में
कोंपल निकले
जैसे भूखे के हाथों
रोटी रख दी
जैसे प्यासे की तुमने
गागर भर दी
तूने वैसा ही मुझको उपहार दिया है

तेरा तन-मन भरा हुआ
खलिहान लगे
सबसे प्यारी यह तेरी
मुस्कान लगे
फूल गया है गेंदे-सा
मेरा तन-मन
चहक रहा है पुलकित हो
मन का आँगन
तूने मरुथल में जीवन का बीज बिया है

दिन का हो उल्लास
तुही संझाबाती
बातें तेरी खुशियाेें
भरी हुई पाती
पास हमेशा रहती तू
दिल में बसकर
तुझे देखकर खिलते मेरे
नयन-अधर
मैंने अपना सबकुछ तेरे नाम किया है

१ फरवरी २०१८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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