अनुभूति में
राहुल शिवाय की रचनाएँ—
गीतों में-
आग शहर में फैल रही है
झूल जाओ प्राण
तज दो
तेरे आने से
दीवारों में बँटा हुआ अब
पतझड़ बीत गया है
बाबू जी का खत आया है
सिर्फ बाँचने लगे समस्या
हम अपनों के मारे
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सिर्फ बाँचने लगे समस्या
सिर्फ बाँचने लगे समस्या
छोड़ समस्याओं के कारण
धर्म-पंथ विस्तार चाह है
पर अधर्म पथ चुना गया है
कितना ही षडयंत्र देश में
जालों जैसा बुना गया है
मानवता का अर्थ कहाँ है
धर्म हृदय में हुआ न धारण
छल ही छल है, हल की चिन्ता
पर संघर्षों से कतराते
सुई चुभाए बिन सिल जाए
मन में बैठे ख्वाब सजाते
भीष्म, द्रोण, कृप चुप बैठे हैं
टूट गया क्या मन का दर्पण
रंक बनेंगें महारंक अब
राजा जी महराज हो गए
भूल गए हम स्वर अंतर का
हम गीतों के साज हो गए
श्रम की सूखी रोटी मुश्किल
मगर मशीनों में आकर्षण
१ फरवरी २०१८
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