अनुभूति में
कुँवर रतन सिंह
की रचनाएँ-
गीतों में-
ग्राम्य गीत
फाल्गुनी प्रार्थना
बिन तुम्हारे कुछ न सुंदर
विलम्बित भोर
|
|
बिन तुम्हारे कुछ न सुंदर
ताज, खजुराहो, अजंता
झील,पर्वत या समंदर–
तुम नहीं तो सब पराया
तुम नहीं तो कुछ न सुंदर!
तुम बिना–बदरंग फागुन
तुम बिना–बेनूर सावन
तुम बिना–सुनसान आँगन
तुम बिना शमशान-सा घर!
साथ तुम तो समय सार्थक
अमिय-सा विष–तीक्ष्ण-घातक
स्निग्ध मुस्कानें तुम्हारी
हैं मिटातीं मॄत्यु का डर!
ओंठ मूँगा, नयन माणिक
देह चन्दन, दंत मुक्तिक
रंक यह जग तुम्हें खोकर
प्राप्त कर के मैं सिकंदर!
बाहु गंगा, जमुन जङ्घा
कंठ में सरस्वति अनंगा
तुंग सम उत्तुंग पयधर
हैं समेटे क्षीरसागर!
तन तड़पता दूर जाकर
मन मचलता निकट आकर
है बताया इस व्यथा ने
प्रीति शाश्वत, नीति नश्वर!
१ जुलाई २०१७ |