अनुभूति में
कुंदन सिंह सजल
की रचनाएँ-
गीतों में-
अब भी दिल्ली दूर
कितने रूप धरे
बँटवारा बो गया कौन
संकलन-
बरगद-
गाँव गए तो |
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कितने रूप धरे
सुबह दुपहरी शाम,
दिवस ने कितने रूप धरे
मौसम भी इस परिवर्तन को,
रोज सलाम करे
जेष्ठ मास में तापमान ने
सब रिकार्ड तोडे
हुई धरा ज्वर ग्रस्त -
गगन ने, अग्निबाण छोडे
जल का गर्म
मिजाज हुआ, मिट्टी में पाँव जरे
मौसम भी इस परिवर्तन को,
रोज सलाम करे
सावन भादौ आये तो -
नभ से, राहत बरसी
वर्षा का स्पर्श मिला -
प्यासी धरती सरसी
धोखा दे
जाते हैं बादल, कभी-कभी नुगरे
मौसम भी इस परिवर्तन को,
रोज सलाम करे
धुंध, कोहरा आसमान ने
कपडों से झाड़े
पौष माघ में सर्दी ने -
अपने झंडे गाड़े
गायब हुए
चाँद, सूरज के, सभी नाज रखरे
मौसम भी इस परिवर्तन को,
रोज सलाम करे
खिले बाग में फूल -
डाल पर कोयलियाँ बोली
मधुमासी बयार ने दिल में -
लगी गाँठ खोली
अब बसंत में अच्छे लगते,
फागुन के मुजरे
मौसम भी इस परिवर्तन को,
रोज सलाम करे
१७
दिसंबर २०१२
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