अनुभूति में
जयराम जय
की रचनाएँ-
गीतों में-
कांकरीट के महानगर में
कौन तोड़ेगा
दुनिया दिखती है अब तो
प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
सच ही बोलेंगे |
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कौन
तोड़ेगा मंच पर छाने
लगे हैं चुटकुले
कौन तोड़ेगा ये पथरीले किले?
हो गयी दुर्योधनी
हैं कामनायें
अनवरत धृतराष्ट्र
जैसी भावनायें
जिनको अपना साथ
देना चाहिए था
वह चले हैं शत्रु का
परचम उठाये
सूर्य के वंशज भी तम से जा मिले
कौन तोड़ेगा ये पथरीले किले?
रख दिया गाण्डीव
अर्जुन ने किनारे
यह मेरा परिवार
इसको कौन मारे
द्रोण के संग भीष्म-
भी बैठे सभा में
सर झुकाये और
हठकर मौन धारे
चल रहे फूहड़ यहाँ जो सिलसिले
कौन तोड़ेगा ये पथरीले किले?
शारदा सुत आज
अर्थाथी हुये
छन्द पिंगल तोड़
कर भर्ती हुये
तालियों के मोह में
निज कर्म तज
जोकरों के वे भी
अनुवर्ती हुये
आजकल श्रोता को
ये शिकवे गिले
कौन तोड़ेगा ये पथरीले किले?
१ दिसंबर २०१५ |