अनुभूति में
जयराम जय
की रचनाएँ-
गीतों में-
कांकरीट के महानगर में
कौन तोड़ेगा
दुनिया दिखती है अब तो
प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
सच ही बोलेंगे |
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दुनिया दिखती है अब तो
कीमत नहीं रह गयी, कोई
अब तो बातों की
दुनिया दिखती है केवल
घातों-प्रतिघातों की
पुरवाई मिल पछुआ से गुल
नया खिलाती है
चकाचौंध की दुनियादारी
उसको भाती है
देख करिश्मे नये, नींद
उड़ जाती रातों की
गाँव, गाँव अब नहीं रहे
हैं बिजली से जगमग
ऐसा हुआ विकास सभी के
पाँव हुये डगमग
ऐसे मद में चूर कि आफत
रिश्ते-नातों की
रीता है घट स्नेह सिन्धु का
सावन लिखे अकाल
भाषा भूले अपने पन की
सब हैं हाल-बेहाल
आज किसे परवाह यहाँ
सबके जज्बातों की
बँटे यहाँ पर रिश्ते-नाते
बँटे खेत खलिहान
बँटवारे का रोग नहीं हो
आये नया विहान
घाट-घाट पर बहे नेह-
रस गंगा प्रातों की।
१ दिसंबर २०१५ |