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अनुभूति में जगदीश श्रीवास्तव की रचनाएँ 

नए गीतों में-
आलपिन सी चुभ रही
गीत गाना सीख
गीत टिटहरी के
धूप तपी चट्टानों पर

हाशियों का शहर

गीतों में-
उभरते हैं रेत पर
सन्नाटा
सूख गया नदिया का पानी

 

उभरते हैं रेत पर

उभरते हैं रेत पर
सूखी नदी के पाँव

पाँव जिन में गति का
एहसास होता है
हो भले छोटा मगर
इतिहास होता है
किनारों के पेड़ सब सूखे मिले
और टुकड़ों में बटी है छाँव

हवाएँ प्यासी जहाँ
दम तोड़ देती हैं
डालियाँ पत्ते स्वयं ही
छोड़ देती हैं
आज भी सुनसान तट पर देखिए
समय की टूटी पड़ी है नाव

धार थी जब पंछियों ने
गीत गाए थे
दो तटों पर आ मिले
अपने परा थे
रेत में बिखरे पड़े हैं नीड़ के तिनके
और उजड़े गाँव

24 जनवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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