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अनुभूति में जगदीश श्रीवास्तव की रचनाएँ 

नए गीतों में-
आलपिन सी चुभ रही
गीत गाना सीख
गीत टिटहरी के
धूप तपी चट्टानों पर

हाशियों का शहर

गीतों में-
उभरते हैं रेत पर
सन्नाटा
सूख गया नदिया का पानी

 

आलपिन-सी चुभ रही

फायलों में ऑलपिन-सी चुभ रही
बँट गयी है उमर खानों में !

लगाकर टाई चले अफ़सर
बोझ लादे चल दिये बाबू
खींचता रिक्शा जहाँ होरी
व्यवस्था के नाम पर गोली।
सभ्यता तो दिख रही नंगी
और हम कपड़े बदलते हैं।
गर्म है बाज़ार रिश्वत का
लग रहा ज्यों
आ गये है हम सयानों में !

पिट गये शतरंज के मोहरे
अब यहाँ पैदल ही चलना है,
हो गया कानून जब अन्धा
बेकसूरों को मिले फाँसी
मुकद्दमे झूठी गवाही के
उमर की भट्टी में अब
जलना ही जलना है।
आस पर आकाश ठहरा है
योजनाएँ हैं उड़ानों में !

५ नवंबर २०१२

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