अनुभूति में
भगवान स्वरूप सरस की रचनाएँ-
गीतों में-
आग से मत खेल
आदमी
और ऊँचे
जब-जब भी भीतर होता हूँ
तुम्हारे इस नगर में
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और ऊँचे
और ऊँचे
और ऊँचे हो गये हैं
घर दलालों के।
कौन उत्तर दे सवालों के
कौन बोले
हमीं केवल हमीं थे
उस सड़क पर
संग्राम के पहले सिपाही।
वक़्त पर बेवक़्त पर हमको
बिछाती-ओढ़ती थी बादशाही
अब हमीं
नेपथ्य से भी दूर
धकियाये गये हैं
बज रहे हैं मंच पर
घुँघरू छिनालों के
खौलते जलकुण्ड में डूबी
किसी की श्लोक-सी सुबहें
किसी की ग़ज़ल -सी शामें
जन्म से अंधी मकड़ियाँ
इंद्रधनुषी जाल बुनती हैं
समय की उँगलियाँ थामे
हाथ बदले हैं
नकाबों में ढँके
चेहरे वही हैं
बंध ढीले पड़ गये
ठंडी मशालों के
कौन उत्तर दे सवालों के
१५ दिसंबर २०१६
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