अनुभूति में
आनंद कुमार गौरव की
रचनाएँ- गीतों में-
खिड़की से चिपका है दिन
ख्वाब छत पर
चाह स्वर्णिम भोर की
प्रीत पावना सावन
भाव बेग तनमन |
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प्रीत पावना
सावन
प्रीत पावना सावन दो
दो पूरा अपनापन दो
गुणा भाग की नगरी में
नहीं शेष कुछ गठरी में
सपने मुस्कान रहित से
तपते हैं दोपहरी में
सुलगी झुलसी रातों को
अब नींदों का चंदन दो
तुम रूठे तो जग रूठा
मौन हुआ गात अनूठा
छूट गया महका आँचल
दृश्य-दृश्य दर्पण झूठा
सुबक-सुबक चलतीं साँसे
औषध से आश्वासन दो
पीड़ा के संयोजन में
प्रेम यज्ञ आयोजन में
संवेदन भटकें राहें
शृंगारों के उपवन में
जहाँ मुस्कुराये थे हम
वो पहला-पहलापन दो
२८ नवंबर २०११ |