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अनुभूति में रामानुज त्रिपाठी की रचनाएँ-

गीतों में—
अहेरी धूप
कौन मौसम अनजाना
गूँगा सूरज
घेर रही बेचैनी
भूख
लहर सिमटकर सोई है

संकलन में—
ज्योति पर्व– छत मुंडेर घर आँगन
वासंती हवा–साँझ फागुन की


 

 

 

लहर सिमटकर सोई है

बहुत दिनों के बाद गोद में सागर की
शायद कोई लहर सिमट कर सोई है

बहुत दिनों के बाद तीर पर
बैठ धूप ने किया आचमन
और छांव सूरज के रथ पर
चढ़ कर चली गई नंदन वन
सिर्फ बिछुड़ कर एक टूटती ख़ामोशी ने
असह वेदना की थाती सँजोई है

बहुत दिनों के बाद पवन
पुरवा न चलते चलते टोका
किसी अपाहिज खुशबू को
कंधे पर लादे आया झोंका
सांझ पकड़ कर चरण किसी सूनेपन का
सिसक सिसक कर आज अनवरत रोई है

बहुत दिनों के बाद अभी तक
ज़िंदा हैं संजोए सपने
आएँगे आख़िरी सांस तक
रचने नये घरौंदे अपने
अभी बची है आहट कुछ आते पल की
शेष अभी दुधमुही कल्पना कोई है
२४ जून २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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