बहुत दिनों के बाद गोद में सागर की
शायद कोई लहर सिमट कर सोई है
बहुत दिनों के बाद तीर पर
बैठ धूप ने किया आचमन
और छांव सूरज के रथ पर
चढ़ कर चली गई नंदन वन
सिर्फ बिछुड़ कर एक टूटती ख़ामोशी ने
असह वेदना की थाती सँजोई है
बहुत दिनों के बाद पवन
पुरवा न चलते चलते टोका
किसी अपाहिज खुशबू को
कंधे पर लादे आया झोंका
सांझ पकड़ कर चरण किसी सूनेपन का
सिसक सिसक कर आज अनवरत रोई है
बहुत दिनों के बाद अभी तक
ज़िंदा हैं संजोए सपने
आएँगे आख़िरी सांस तक
रचने नये घरौंदे अपने
अभी बची है आहट कुछ आते पल की
शेष अभी दुधमुही कल्पना कोई है
२४ जून २००६