अनुभूति में
रामानुज त्रिपाठी की रचनाएँ-
गीतों में—
अहेरी धूप
कौन मौसम अनजाना
गूँगा सूरज
घेर रही बेचैनी
भूख
लहर सिमटकर सोई है
संकलन में—
ज्योति पर्व–
छत मुंडेर घर आँगन
वासंती हवा–साँझ
फागुन की
|
|
अहेरी धूप
पीतपर्णी नीड़ में सोए हुए
फिर परिंदे फड़फड़ाकर पंख जागे।
लगे शायद टूटने खामोश लम्हे
थकी हारी ज़िंदगी के मूल्य बदले
लड़खड़ाती साँस के हर साज़ पर
कुछ उगे आरोह कुछ अवरोह मचले
बिछड़ कर फिर
तार सप्तक से कहीं
लौट आए भूले भटके स्वर अभागे।
धुआँए परिवेश से
संवाद कर के
छटपटा कर फिर अहेरी धूप हारी
ठूँठ से लटकी हुई
परछाइयाँ ही
कदाचित अपनी निभाएँ ज़िम्मेदारी
अबोले प्रतिबिंब
घुटने टेक बैठे
चरमराए धुंध आइने के आगे
दूर तक दिखती नहीं
हलचल कोई जब
वीथियों से क्या करें शिकवे गिले
समुंदर की कोख से तो
शंख सीपी
हमें अबतक बिना माँगे ही मिले
पर हठी मगरूर
रेगिस्तान से
कौन आखिर एक मुट्ठी रेत माँगे।
२४ जून २००६ |