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अनुभूति में गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएँ-

गीतों में-
कौन थकान हरे जीवन की

छाया मत छूना

कविताओं में-
आज हैं केसर रंग रंगे वन
चूड़ी का टुकड़ा
ढाकबनी
नया कवि
पन्द्रह अगस्त
बरसों के बाद कभी

संकलन में-
वर्षा मंगल- भीगा दिन
मेरा भारत- हम होंगे कामयाब

 

कौन थकान हरे जीवन की

बीत गया संगीत प्यार का,
रूठ गयी कविता भी मन की।

वंशी में अब नींद भरी है,
स्वर पर पीत साँझ उतरी है
बुझती जाती गूँज आखिरी

इस उदास बन पथ के ऊपर
पतझर की छाया गहरी है,

अब सपनों में शेष रह गई
सुधियाँ उस चंदन के बन की।

रात हुई पंछी घर आए,
पथ के सारे स्वर सकुचाए,
म्लान दिया बत्ती की बेला
थके प्रवासी की आंखों में
आंसू आ आ कर कुम्हलाए,

कहीं बहुत ही दूर उनींदी
झाँझ बज रही है पूजन की।
कौन थकान हरे जीवन की?

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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