अनुभूति में डॉ. गोपाल बाबू
शर्मा की रचनाएँ-
नई रचनाएँ
हाइकु में-
तपती छाँह
दोहों में-
नेता जी के पास हैं
फागुनी दोहे
हास्य व्यंग्य
में-
खूब गुलछर्रे उडाते जाइये
|
|
तपती छाँह
१
तपती छाँव
पनघट उदास
कहाँ वे गाँव ?
२
झींकना -रोना
अब तो रह गया
रिश्तों का ढोना
३
धूप भी छाँव
बन गई हमको
तुम्हारे गाँव
४
आकुल मन
भर-भर आता ज्यों
यादों के घन
५
भीगती शाम
साथ-साथ लिखे थे
पेड़ों पे नाम
६
नदी समीप
मन बैठा तैराता
सुधि के दीप
७
फूली सरसों
खेतों में देखे बिन
बीते बरसों
८
दीजिए बता-
भीगी हुई आँखों को
हँसी का पता
१३ मई २०१३
|