अनुभूति में डॉ. गोपाल बाबू
शर्मा की रचनाएँ-
दोहों में-
नेता जी के पास हैं
फागुनी दोहे
हास्य व्यंग्य में-
खूब गुलछर्रे उडाते जाइये
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फागुनी दोहे
फागुन हँसता, झूमता, लिए हाथ में चंग।
मन के भीतर छिड़ गई, एक अनोखी जंग।।
सरसों फूली हौस में, भौरे गाते गान।
टेसू रागों में रंगे, चले काम के बान।।
प्रकृति नई दुल्हन बनी, हुए रंगोली खेत।
भीगी मीठे प्यार से, पगडंडी की रेत।।
बदरा से चारों तरफ़, उड़े अबीर-गुलाल।
पग-पग पर बिखरें-दिखे, रंग-बिरंगे ताल।।
आँगन में झाँझर मुखर, चौपालों पर गीत।
भाव-जगे सपने जगे, मन में उमड़ी प्रीत।।
नयना मतवारे भये, मन में दहकी आग।
फागुन आया प्रिय नहीं, कैसे खेले फाग।।
किसने मला गुलाल मुख, किसने डाला रंग।
गोरी को सुध-बुध कहाँ, मन यादों के संग।।
हिल-मिल होली खेलिए, मन का आपा खोय।
कल की है किसको ख़बर, कौन कहाँ पर होय।।
16 अप्रैल 2007
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