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अनुभूति में विनोद दुबे की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
प्रवासी
बनारस


 

 

बनारस

इतिहास से भी पुराना, एक दौर है बनारस
एक शहर का नाम भर नहीं
जिंदादिली से जीने का एक तौर है बनारस
योग-भोग, माया-मोक्ष जहाँ साथ बैठे, वो ठौर है बनारस
ना भूत का पछतावा, ना भविष्य की चिंता
अपने महादेव सा अलमस्त है, अघोर है बनारस

गंगा में डूबते चाँद तारों की मज्लिस
सुबह की आहट का रूहानी सा मंजर
सूरज के किरणों के घुलने की जुम्बिश
उनींदी आँखों को मलता
अलसाता सा शहर

विश्वनाथ मंदिर के मंगला आरती की घंटी
ज्ञानवापी मस्जिद के सुबह की अजान
दशाश्वमेध और अस्सी की गंगा आरती
हरिश्चंद और मणिकर्णिका का महाशमशान
जिस अलौकिक छवि के लिए आँखें खुद-ब-खुद खुल जाए, है वो वजह बनारस
जहाँ कायनात भी भोर का इस्तकबाल करे
है वो जगह बनारस
किसी ने ऐसे ही तो नहीं लिखा होगा
कि शाम अवध की, सुबह बनारस ...

फूली-फूली कचौड़ियों की गर्मी
गरमागरम जलेबी का शीरा
ठंडी-ठंडी मलइयो का मक्खन
कुल्हड़ में जैसे हो स्वाद का झीरा
भोजन से बनारसी का कहाँ हैं वास्ता
हर बखत के लिए उसका एक अलग है नास्ता
गर नास्ता है वाक्य, तो पंक्चुएशन है पान
पान दरीबा के किमाम की खुश्बू में लिपटा
एक बनारसी के दिल की धड़कन है पान

गुड़गुड़ाती आवाज में दीवारों पर गुलकारियों करता
पान का शौकीन है बनारसी
ठंडई और भाँग के घूँट में मस्त गरियाता
रोजमर्रा की मुश्किलों का तौहीन है बनारसी
हर स्वाद में जिंदगी के मजे लेता
जितना मीठा है उतना नमकीन है बनारसी
शायद इसीलिए कहते है कि बनारस सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एहसास है जो दिल में बसता है
वो बनारसी देश विदेश कहीं भी रहे
यह एहसास ताउम्र उसके साथ चलता है

जिसे जिस रूप में भाए, उसी में जँचता है बनारस
एक ही शहर के भीतर, कई चेहरे बदलता है बनारस
कभी मंदिरों, घण्टियों और
वैरागियों की धुन में लीन है बनारस
तो कभी अजान की गंगा जमुनी तहजीब सा
जहीन है, बनारस
कभी गोदौलिया, दालमंडी, नयी सड़क की भीड़ में बिलकुल मशीन है, बनारस
तो कभी बी एच यू और रविदास पार्क की
खूबसरत शॉल ओढ़े हसीन है, बनारस
कभी अपनी साड़ियों के जरी वाले बारीक काम सा
महीन है, बनारस
तो कभी पक्के महाल और तंग गलियों की पेचीदगी-सा संगीन है, बनारस
कभी धू-धू जलते अनवरत शमशान सा
ग़मगीन है, बनारस
तो कभी दुनियादारी से परे अपने महादेव के
रंग में रंगीन है, बनारस ..

बनारस एक दर्शन है
जो एक बनारसी को याद दिलाता है
कि इस दुनिया की दौड़ में वो बहुत कुछ खोयेगा
और पायेगा
पर एक दिन यहीं गंगा किनारे
किसी घाट की चिता में जलकर
वो भी बाकियों की तरह सिर्फ बनारस हो जाएगा

१ सितंबर २०२३

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