अनुभूति में
डॉ. क्षिप्रा शिल्पी की रचनाएँ-
गीतों में-
माँ का आँचल भूल गये
कृष्ण फिर एक बार आओ
हमें तो गर्व है जन्मे है आर्य
भूमि में
छंदमुक्त में-
माँ आपके लिये
अंजुमन में-
अभिलाषा खुशियों की |
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कृष्ण फिर एक
बार आओ
दृग प्रतीक्षारत हमारे
आओ' प्रिय अब पास आओ
बिन तुम्हारे भाव सारे
हैं अधूरे मान जाओ
नेह का अनुबंध है ये
प्रण निभाने की घड़ी है
हर किसी को आज जग में
सिर्फ अपनी ही पड़ी है
छल कपट ने है छला मन
दीप साहस का जलाओ
प्रेम सीता का अनूठा
सावित्री भी पतिव्रता है
प्रेम का ये रूप पावन
ढूँढना मन चाहता है
वासना को पवित्रता के
रूप का दर्पण दिखाओ
है विकट क्षण ये विरह के
आपदा भी है बड़ी ये
धड़कने है हाथ प्रभु के
है परीक्षा की घड़ी ये
मोह माया में बँधा मन
पथ जगत को तुम दिखाओ
ज़िन्दगी रण भूमि जैसी
प्राण की कीमत घटी है
ताख पर संबंध सारे
लाज की चादर फटी है
घोर कलयुग के क्षणों में
कृष्ण फिर इक बार आओ
१ अगस्त २०२२ |