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अनुभूति में शिल्पा अग्रवाल की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
ओ प्रिय
सुनो पतझड़

 

सुनो पतझड़ !

अजीर्ण में जीवन का राग,
जादुई रंगों के पात,
खो कर पाने की बात ,
सतरंगी सौंदर्य सर्वत्र,
नयी फसल का उत्सव,
जाड़े के आगमन का नाद
आँगन के अनूठे अलाव,
जुड़ाव और फिर अलगाव,
गिर कर उठने की सीख,
क्षण-भंगुर माया से प्रीत,
जीवन-मरण की रीत,
न होने में होने का आभास,
दुःख में सुख का वास,
बसंत के फिर आने की आस,

सुनो पतझड़! तुम दार्शनिक से लगते हो।
तुम सूरज की भट्टी में तप,
गिर चुके पत्तों में कुरकुरे हो,
कितना कुछ कहते, सुनते, दिखाते, सिखाते ...
...दे जाते हो
तुम्हारे आने में जाना निहित है,
और उस जाने से, आना निश्चित है,
तुम आरम्भ हो,
और तुम ही अंत हो
या शायद तुम अनंत हो...

७ जनवरी २०१३

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