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अनुभूति में सरिता नेमानी की रचनाएँ

कविताओं में-
उसकी खामोशी
कैसा आतंक
साथ
 

 

साथ

जाना चाहती हूँ
क्षितिज के पास
पसंद करोगे क्या देना मेरा साथ
पाना चाहती हूँ
सहारा तुम्हारा
क्या पा जाऊँगी मैं वो किनारा
नहीं चाहती तुम बनो मेरी कमज़ोरी
क्या बन पाओगे
तेज़ ताक़त मेरी
चाहो तो
बना लो लोहे को सोना
नहीं चाहती मैं पारस को खोना
चाहो तो
डाल दो बेजान में जान
नहीं तो जीवन है वीरान
यदि ना हो मेरा साथ गँवारा
भूल जाना यह प्रस्ताव हमारा
ना हो तुम्हारे दिल को ये सब कुछ मंजूर
साफ़-साफ़
कर देना हमें नज़रों से दूर
और अगर चलना चाहो लेकर
हाथों में हाथ
तो चलना होगा
तुम्हें क्षितिज तक मेरे साथ
फिर कुम्हार तुम और बनूँ माटी मैं
जिस साँचे मे ढालोगे ढल जाऊँगी मैं

२४ मार्च २००८

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