अनुभूति में
सरिता नेमानी की रचनाएँ
कविताओं में-
उसकी खामोशी
कैसा आतंक
साथ
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कैसा आतंक
अकेलेपन से घबराकर मैं
पहुँची जब छत पर,
देखा ये कैसा सन्नाटा
क्या सभी को चुभ गया काँटा?
आखिर क्या हुआ जो
सभी अपने घर दुबके हुए हैं
चिड़िया घोसले मे गुम हैं
क्यों बगिया सूनी-सूनी हैं?
साँय-साँय करती ये हवा
क्यों ज्वालामुखी में ये लावा?
चारों तरफ़ फैला ये कैसा आतंक
जिसको देख जाए दिल ऐसा दहक
क्यों होता है माहौल ऐसा भ्रष्ट
किसने किया है इस शांति को नष्ट
मन में उठे अनेक विचार
संतोष ने जब कर ली सीमा पार
मन मेरा करने लगा ढेरों सवाल
जवाब की खोज मे निकले मेरे ख़याल
देख, उस बालक को
जो कैसे खुशी से झूम रहा
जात-पात के भेद भुला
कैसे रंगो मे रंग घोल रहा
सच, इस तरह बार-बार मरके जीना
अच्छा है एक बार जीकर मरना
फिर जो होगा उसे देखा जाएगा
कम से कम
मन डरपोक तो ना कहलाएगा
हौसले करो बुलंद
उस चाँद तारों की तरह
दृढ़ संकल्प करो
मन में तपते सूरज की तरह
आओ गिरा दें
नफ़रत की दीवार को
जो दे रही हवा
आंतक की बहार को
फिर देख ये दुनिया
कैसी मुसकाती हुई बगिया
कोयल की वो सुरीली राग
मिटा देगी मन के सारे दाग
२४ मार्च २००८
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