रूह की आज़ादी
लो कर दिए अब रिश्ते
नामों की क़ैद से आज्जाद मैंने।
उड़ने लगे अब वे
खुले आसमान में
अपने खूबसूरत पंख फडफडाते।
देर तक इन्हें पिंजरे में
हिफाज़त से बंद रखा था।
बाहर जीव -जंतुओं का
खतरा जो था।
जब पिंजरों के सीखचों से
सर पटखते पाया इन्हें
इनके लहूलुहान माथों ने
समझाया मुझे
कि बाहर के खुले आसमान में
ज़ख्म तो इन्हें लगेंगे ही
पर वो भरेंगे भी
रूह तो ज़ख़्मी नहीं होगी।
२३ अगस्त २०१०
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