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अनुभूति में राधेकांत दवे की
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मन की बात

गीतों में-
शांति मंत्र का जाम

 

मन की बात

मन की बात बताता हूँ मैं
युग–युग तक चुप रहा, आज
जन–जन का साद सुनाता हूँ मैं
मन की बात बताता हूँ मैं
ठहरो जी!
यह कहाँ ले चले सारे का
सारा ही तुम आकाश बटोर कर,
झोली में अपनी तुम भर कर
फटी?
अरे, यह कैसा दावा!
कहते हो कि,
पहुँचे तुम सबसे पहले गगनांचल
पर, विराट के पंख लगा कर।
किन्तु
किसके पंख कुचल कर? और
बना दो, किस किसको
धोख दे दे कर?
औ' यह भी समझ लो!
परिश्रम के सीकर से सिंचित
हैं ये गगन–पुष्प सब हमरे,
चाँद, सितारे, सूरज, पृथ्वी,
नीहारिकाएँ, कण–कण उज्ज्वल
हम सबके ये स्वप्न रंगीले।
हटो यहाँ से!
सच कहता हूँ
खाली करो झोली शान्ति से।
फूल एक मैं चुन के रहूँगा
एक सितारा ले के रहूँगा
एक स्वप्न सच करके रहूँगा।
और भले कुछ भी हो जाए,
एक–एक चुन–चुन कर सुरभित
पुष्प, गगन के हीरे, सच्चे स्वप्न
सभी को दे के रहूँगा।
चाहे हो तुम साम्यवादी या
पूँजीवादी, मानव – मानवतावादी
ईश्वर या जनतंत्रवादी
सुन लो बंधु! कान खोल कर
जन–शोषण हो नहीं सकेगा अब से,
तुमको आत्म–विसर्जन करना होगा।
कवि हूँ कवि!
मैं क्रान्तदर्शी हूँ।
नवीन क्रान्ति सिखलाता हूँ मैं
शान्त स्वरों में लड़ता हूँ मैं
युग–युग से चुप रहा, आज
जन–जन का साद सुनाता हूँ मैं
मन की बात बताता हूँ मैं।

९ सितंबर २००४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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