अनुभूति में
राधेकांत दवे की
रचनाएँ—
छंदमुक्त में
बरफ से
मन की बात
गीतों में-
शांति मंत्र का जाम
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बर्फ से
बर्फ़ तुम धीरे धीरे बरसो
सुनो सयानी सखि
इतनी जल्दी क्या है सजनि
शीत का मौसम पूरा पड़ा है
अभी आज कल परसों
ही थोड़ा थोड़ा बरसों
सुनो सयानी सखि
बर्फ़ तुम धीरे धीरे बरसो
यातायात सभी ठप्प हैं
घर में सब ग्रोसरी ख़त्म है
जैसे खड़ा रहा जीवन है
जैसे सोया हुआ समय है
ऐसे में तुम ही क्यों दौड़ो
इत्मीनान से बैठो बोलो
हलके हलके बरसो
जी धीरे धीरे बरसो
सुनो सयानी सखि
बर्फ़ तुम धीरे धीरे बरसो
सुदूर की तुम राजकुमारी
जानूं तुमको खोज हमारी
इसीलिए करती यायावरी
भटक रही तुम मारी मारी
बर्फ़सुन्दरी ओ सुकुमारी
बैन मधुर अब बोलो
चुपके चुपके बरसो
जी धीरे धीरे बरसो
सुनो सयानी सखि
बर्फ़ तुम धीरे धीरे बरसो
जान गया गर बूढ़ा विन्टर
क्रोधित हो भेजेगा बवंडर
हाहाकार करेगा निरंतर
सारा विंध्य करेगा बंजर
प्राणप्रिये तुम हो गुणसागर
अरी निगोड़ी मेरे ख़ातिर
बचती बचती बरसो
सुनो सयानी सखि
बर्फ़ तुम धीरे धीरे बरसो
९ सितंबर २००४
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