अनुभूति में
प्रो. रमानाथ शर्मा की रचनाएँ-
अपने सपने
बसंत को बुलाओ
बाद में हम
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बसंत को बुलाओ
किसने कहा था
बुलाओ बसंत को।
कलियों में खिलने की ललक नहीं,
फूल की टहनियों पर तितलियों के पाँव,
छाँव बन उभरे नहीं,
हवा की हर शोखी खोखी है,
कोयल को मियादी बुख़ार है,
भौंरों की गुमशुदों में शुमार है।
आमों के बौर सभी पतझर चुरा गया,
कंकरीली राहों चल, कांक्रीटी जंगलों में कैद
तुम्हारा ई-मेल, कैसे ढूँढ पाएगा बसंत को।
बसंत कोई चूहा तो नही जो
डाट-काम के गुग्गुली इंजन की सर्च पर
चूं-चूं कर भागे और बताए -
'बनन में बागन में बगरौ बसंत है'।
16
मार्च 2007
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