अनुभूति में
प्रो. रामानाथ शर्मा की रचनाएँ-
अपने सपने
बसंत को बुलाओ
बाद में हम
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अपने सपने
तेरे-मेरे-अपने सपने
तभी तक अपने हैं
जब तक उन पर उपलब्धियों
की मुहर नहीं लग जाती।
मुहर लगते ही सपने टूटते हैं,
अपने छूटते हैं।
जो छूट जाता है मेरा है।
जो टूट जाता है तेरा है।
रहा अपना, उसी का नाम है सपना।
16 मार्च 2007
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