अनुभूति में डॉ. हरदीप संधु
की रचनाएँ- छंदमुक्त में-
गधा कौन
मिट्टी का घरौंदा
मेरे गाँव की फिरनी
रब न मिला
हाइकु कविता
हाइकु में-
सात हाइकु |
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मेरे गाँव की फिरनी
मेरे गाँव की फिरनी*
यूँ पड़ गई सोच में
अब आते कम हैं.....
हर कोई जाने की सोचे
मैं तो खड़ी वहीं हूँ
जहाँ छोड़ गए तुम
अब परदेसी होकर
भूल गए गाँव को
भला सब का चाहूँ
न कोई शिकवा मुझको
फिर से फेरा डालो
ओ मेरे वतन वालो....
इन्तजार है उसको
वो दिल से पुकारे
एक बार आ जाओ ....
फिर से जो तुम
देखो गाँव के नजा़रे !
* गाँव के चारों ओर बना रास्ता
३० मई २०११ |