बिकना एक इनवेस्टमैंट था
सुना है तुम बिके थे!
किसके सामने
किसके लिए
कितने में
किसे पता?
बहुत दिनों पहले कि बात है शायद
जब तुम बिके थे...
आज जब तुम्हें देखता हूँ
तो लगता नहीं तुम बिके थे
ये शान
ये ठाट
ये अकड़!
अब समझ में आया
बिकना एक इंवेस्टमैंट था
तुम बिके नहीं
इंवेस्ट हुए
और तुम्हारा इंवेस्टमैंट
फ़ायदे का रहा
तुम्हारे बच्चों और तुम्हारे लिए।
सोचता हूँ मैं भी बिक जाऊँ...
अपना तो कुछ कर न सका
बच्चों के लिए ही कुछ बना जाऊँ...
फिर खयाल आया
तुम जब बिके तो तुम्हारे साथ
मेरे भी कुछ हिस्से बिक गए
इंवेस्ट हो गए
तुम्हारे धर्म
तुम्हारी जाति
तुम्हारी भाषा
तुम्हारी संस्कृति के नाम पर
और मेरे पास बाकी जो बचा हैं
उसकी तो बाज़ार में कोई कीमत ही नहीं
वो तुम्हारे इंवेस्टमैंट का बोझ ढोते-ढोते
पंजरों का एक ठेला बन गया हैं
जो खुद नहीं चल सकता है
जब तक तुम धक्का न दो।
सोचता हूँ...
इसे ख़रीदेगा कौन?
अपने लिए तो...
घाटे का इंवेस्टमैण्ट हूँ मैं।
24 दिसंबर 2007
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