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अनुभूति में भारतेंदु श्रीवास्तव की रचनाएँ—

तुकांत में--
तन पराग
रसमय गुंजन

संकलन में—
होली है – कैनेडा में होली

 

रसमय गुंजन

कागज, लेखनी और मसि किंचित न साधन।
हो तब भी "भारतेन्दु" अतिशय मधुर गायन।।

धन्य इलेक्ट्रॉनिक देव अपार तुम्हारी महिमा।
मिलन का बहु सुंदर सजाया यह साधन।।

कनीकी रंगमंच पर दिग्दर्शित भाव–नर्तन।
काव्य नूपुर सुनिए लख लख कर प्रिय–जन।।

देह बदल रही कविता इस नवीन युग में
पर आत्म अनुवाद सदा "भारतेन्दु" सनातन।।

खुल गए कपाट अब अर्वाचीन देवालय के।
नित्य न सही, यदाकदा करिए अवश्य दर्शन।।

नाना पुष्प खिलेंगे "भारतेन्दु" इस उपवन में।
अलि भ्रमण करना रंजन रसमय गुंजन।।

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