अनुभूति में
आशीष मिश्रा
की रचनाएँ
दिशांतर में-
धीरे-धीरे जब आँगन में
पुरानी है मूरत
बना प्रवासी एक देश मे
ब्रिटेन का पतझर
ये देश ये शहर
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पुरानी है
मूरत
पुरानी है मूरत नए आवरण में
कहाँ कुछ है बदला वातावरण में
सुना है उन्होंने नया आज पहना
करी देर क्यों फिर यहाँ आगमन में
उन्हें लिख रहा हूँ ये पत्र अब
नयी एक बोली नये व्याकरण में
कब से हृदय में सजाया है उनको
होले से रक्खा है अंतःकरण में
थोड़ा-सा पाकर वे अकड़े हैं कैसे
पके फल की डाली, कहाँ आचरण में
कुछ हैं हृदय को शहद से भिगोये
कुछ लिये नीम बैठे जीभ के उपकरण में
उसने कहा क्या और उससे सुना क्या
शिकायत मिलेगी बेवजह आकलन में
कहाँ कुछ है बदला वातावरण में
पुरानी है मूरत नए आवरण में
१ दिसंबर २०२२
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