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अनुभूति में आशीष मिश्रा की रचनाएँ

दिशांतर में-
धीरे-धीरे जब आँगन में
पुरानी है मूरत
बना प्रवासी एक देश मे
ब्रिटेन का पतझर
ये देश ये शहर
 

 

बना प्रवासी एक देश में

एक मोड़ ऐसा जीवन में आया लेकर अवसर
बना प्रवासी एक देश में, सपने अंदर भरकर
इस कविता में सच मानो, मैं मन की कहता हूँ
कौन प्रवासी होता है, कुछ पंक्ति में रखता हूँ

जो लेकर आता है माटी अपने मन के कोने में
जो जागा रखता है भारत, जागे में या सोने में
जो लाता है गंगा जल की शीशी अपने झोले में
जो लाता है गर्व हिंद का भारत वासी होने में
लाता है वह संस्कार अपने सीने में कसकर

जो आया है दूर धरा पर, लेकर अपनी आशा
शायद लिखने को आया है मेहनत की परिभाषा
परिभाषा एक नयी क्षुधा में, नयी सुधा पीने को
परिवर्तन करने को आया, नव जीवन जीने को
सहता सारे दुःख जीवन के देखो केवल हँसकर

अंतर कुछ भी हुआ नहीं चाहे चंदा से दूर हुए
कुछ ऐसे भी हुए प्रवासी, नये देश में नूर हुए
कुछ ने अंग्रेजी में हिंदी बोली को संजोया है
कुछ ने कथा कहानी लिखकर सुंदर इसको बोया है
सुंदर इसको और बनाया, कुछ ने कविता लिखकर

एक मोड़ ऐसा जीवन में आया लेकर अवसर
बना प्रवासी एक देश में, सपने अंदर भरकर

१ दिसंबर २०२२

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