अनुभूति में
आरती
पाल बघेल की रचनाएँ
छंदमुक्त
में—
चलो खुशी ढूँढ लाएँ
तालमेल
नई सुबह
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चलो खुशी ढूँढ लाएँ
जबसे हुई है समझ इस जहाँ की
खुशी की तलाश में देखा हर किसी को
रिक्शेवाले ने सोचा है पैसे में उसकी किस्मत छुपी
झुग्गी में रहती माँ को दिखी वो
सुंदर मकान के भीतर कहीं
पढ़ने वाले को डिगरी लगी हर मुसीबत का हल
अभिनेत्री नए ब्रेक को मान बैठी खुशी की गली
पोते को देख दादी निहाल हो गई
भूख से बोझिल हुआ जब कोई
भोजन की खुशबू खुशी दे गई
कहीं भड़कीली कहीं चमचमाती
कहीं कुछ दबी सी कहीं उभरी उभरी
बड़ी चुलबुली सी बड़ी मनचली
हर नज़र में खुशी अपने ही रंग में दिखी
क्या है सही कुछ कहना कठिन था
तभी खिलखिलाता घुटनों के बल
एक अबोध मेरे सामने आ गया
न रह गया कोई सवाल न बचा कोई हल
भूल सब कुछ मैं भी खिल उठी
ढल गए उसकी मासूमियत में
वो उलझे सवाल वो गंभीर पल
मैं खुश हो गई मुझे खुशी मिल गई
ढूँढ लो तुम भी है बसेरा उसका यहीं पर कहीं
बहुत नज़दीक है
सुनो तो सुनेगी धड़कन भी उसकी
यों लगता है ये है परछाईं खुदी की
इतने करीब है फिर भी अजनबी
खोज लो निशां इसकी पहचान के
मुझे मिल गई है ढूंढ लो तुम भी
बसेरा उसका है बस यहीं पर यहीं
९ जून २००६
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