अनुभूति में
अर्बुदा ओहरी की रचनाएँ—
क्षणिकाओं में-
पाँच क्षणिकाएँ
हाइकु में—
छे हाइकु
कविताओं में—
तुम्हारा आना
सराहना
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पाँच क्षणिकाएँ
(1)
उड़ते- घुमड़ते
गुज़र जाता है वक्त
साल दर साल
दबे पाँव
छोड़ जाता है
उम्र पर
जाने अनजाने
अपने सफर के निशान।
(2)
उफनती लहरें,
सरसराते पत्ते,
उड़ती हुई रेत
और हमारी साँसें
पिरो रखा है
हवा ने इन्हें
एकसाथ।
(3)
बंद मुट्ठी में
क्या बँध सका
हाथ खोला
और देखो तो
आसमान
सिमट कर
बाहों में आगया।
(4)
मौसम और इंसान
नहीं रहते
एक समान
वक्त के साथ
बदलते हैं
दोनों ही।
(5)
दो लोगों के बीच
ज़रूरी नहीं
शब्द और ज़ुबान हो
रिक्त आवाज़ को
बिन कहे बात को
दिल भी अक्सर
सुन लेता है।
२९ जून २००९
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