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अनुभूति में अनिल जनविजय की कविताएँ- 

अनमने दिन
अभ्रकी धूप
पहले की तरह
प्रतीक्षा
बदलाव
वह दिन
वह लड़की
विरह-गान
संदेसा
होली का वह दिन

 

 

पहले की तरह

पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर

''अरे. . . सब-कुछ पहले जैसा है
सब वैसा का वैसा है. . .
पहले की तरह. . .''

फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा

उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
फिर उस की आँखों में झाँका

मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी

चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
पहले की तरह

24 जनवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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