अनमने दिन अभ्रकी धूप पहले की तरह प्रतीक्षा बदलाव वह दिन वह लड़की विरह-गान संदेसा होली का वह दिन
दिन बीते रीते-रीते इन सूनी राहों पे
मिला न कोई राही बना न कोई साथी वन सूखे चाहों के
याद न कोई आता न मन को कोई भाता घेरे खाली हैं बाहों के
कलप रहा है तन जैसे भू-अगन दिन आए फिर कराहों के
24 जनवरी 2007
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