अनुभूति में
डा. अजय त्रिपाठी की रचनाएँ—
मैं आया हूँ
है याद मुझे |
|
मैं आया हूँ
कुछ मायूसों की
बस्ती में
मैं ख्वाब बेचने आया हूँ,
उन मुर्दों का जो जिंदा है
मैं दिल बहलाने आया हूँ।
बेनूर निगाहों की ख़ातिर
लेकर प्रकाश मैं आया हूँ,
मैं वस्त्रहीन कंकालों की
ख़ातिर
कुछ कपड़े लाया हूँ।
चेहरे की चंद
लकीरें जो
जीवन गाथा बतलाती है,
उस गाथा का हो अंत सुखद
उम्मीद जगाने आया हूँ।
मैं नाकामी के मरुथल में
इक बूंद ओस की बन कर के,
खुद को मिटवाने की ख़ातिर
ही
अपने घर से आया हूँ।
जहाँ धर्म ने
बोई है नफ़रत
और लहू बहा है नदियों में,
मैं घुस कर ऐसे दलदल में
इक पुष्प खिलाने आया हूँ।
मैं गोवर्धन के पर्वत को
उँगली पे आज उठा लूँगा,
शोषण से मुक्ति का ले कर
इक
मंत्र बाण, मैं आया हूँ।
शेषनाग तुम
मुझे बना
जीवन सागर मंथन कर लो,
अमृत तो अपने पास रखो
मैं विभा को चुराने आया हूँ।
जब तक तुम सहते जाओगे
जुल्म करेगा ही जुल्मी,
मिल साथ उठो संघर्ष करो
हिम्मत
जुटलाने आया हूँ।
हो पार्थ तुम्हीं,
तुम गुडाकेश
तुम को ही बाण चलाने हैं,
है कुरुक्षेत्र ये रणभूमि
मैं सारथी बनके आया हूँ।
खुद ही सोचो क्या अच्छा है
खुद ही सोचो क्या करना है,
तुम चंद्रगुप्त मैं चाणक्य
ये
बात बताने आया हूँ।
इस गाथा का हो
अंत सुखद उम्मीद जगाने आया हूँ
हर गाथा का हो अंत सुखद
उम्मीद जगाने आया हूँ।
२४ नवंबर २००५
|