प्रार्थना का वक्त
यह प्रार्थना का वक्त है
एक सात्विक अहसास के साथ
हाथ जोड़ खड़े हो जाओं
एक कतार में।
सभ्यताएँ अपने
तयशुदा हिस्सों को
एक-एक कर
छोड़ती जा रहीं हैं।
बरसों पुरानी
स्थापित इमारतें
दरक रही हैं
अपनी नींव से
धीरे-धीरे।
पिछले हफ़्ते के
सबसे अमीर आदमी
को पछाड़ कर
पहली संख्या पर जा
विराजा है कोई
अभी-अभी।
नंगे पाँवों को
कहीं जगह नहीं है
और कीमती जूते
सारी जगह को
घेरते चले जा रहे हैं।
अँधेरे को
परे धकेल कर
रोशनी आई है
सज सँवर कर
आज सुबह ही
उससे दोस्ती करने को
लालायित हैं
कई दोस्त अपने भी
वाकई
यही प्रार्थना का
सही वक्त है।
1 सितंबर 2007
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