अनुभूति में
विपिन चौधरी की
रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक उदास चेहरा
दुख अपना रास्ता
धरती आकाश
मृगतृष्णा
कविताओं में-
आवाज़ों का कोलाहल
एक उदास शाम
एक बार फिर
कितने रंग
ग़ायब होती एक तस्वीर
जन्मदिवस
प्रार्थना का वक्त
पत्थर होती दुनिया
परछाइयों के पीछे-पीछे
मेरा सरोकार मेरा संवाद
मेरा होना न होना
सपनों के बीच वह
समर्पण
सुलझी हुई
पहेली
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धरती आकाश
जब तुम आकाश रच रहे थे
ठीक उसी वक्त मैं भी व्यस्त थी
अपनी धरती की उष्मा बचाने में
तुमनें ढेर सारे मोती बिखेर दिए थे और कहा था
चुनो
कुछ अपने लिए
तब पहली बार लगा था
चुनना कितना कठिन होता है
जब तुमनें हाथ जोड़ कर कहा था
माँगो
तो मैने कुछ न माँगते हुए भी
बहुत कुछ माँग लिया
तब एक पल को मेरी प्रार्थना की कंपकपाहट से
दीये की लौ भी काँप गई थी
उसी वक्त मुझे अपने सपनों का जहान मिल गया था।
जब तुम अपने सपनों को मेरे सिराहने छोड़ आए थे और मैं
उन सपनों की झिलमिलाहट में देर तक डुबती
उतरती रही थी
तुम यह बेहतर जानते थे
मुझें हर उस चीज़ से प्रेम था जो
कुदरत ने बिना किसी चूल अचूल परिवतन के
मेरी नज़रों के सामनें रख दी थी।
यह उन दिनों की यह बात किसी
भरोसे की शुरुआत की तरह ही थी जो
कभी खतम होनें वाली नहीं थी
१४ सितंबर २००९ |