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माँ ने कहा
था
अंजुरी में काँपती दुवाएँ रखकर
उसकी माँ ने कहा था
पहुँचते ही चिट्ठी डाल देना।
हर रोज उठते बैठते
सोचती रहती
कैसा होगा मेरा लाल?
भूल गया होगा चिट्ठी लिखना
या डाकिये ने गुमा दी होगी
हर आहट पर पूछती
“क्या डाकिया आया है?”
ख़त आता भी कहाँ से
जो कभी लिखा ही नहीं गया
उस रात भी जब ख़ुदा के घर से
चिट्टी आई थी मौत की
वो पूछती रही बेटियों से
“कैसा होगा मेरे घर का चिराग?”
अचानक कोई आवाज़ आई
माँ ख़ुशी से चिल्लाई
“डाकिया आ गया”
“डाकिया आ गया”
और सच में डाकिया आ गया था
ख़ुदा के घर से, उसे लेने
मगर बेटे का ख़त नहीं लाया।
१ फरवरी २०१७ |