और तो और
अब
ब्लैक एंड व्हाइट
टी.वी. जैसी
लुप्त होती जा रही हैं
संवेदनाएं
मुहल्ले में
जब कोई मर जाता है
तब पता चलता है
लम्बे अर्से से
बीमार था वो
ससुराल जाते समय
नहीं आतीं
ब्याहता बेटियाँ
अब देहरी पूजने
अब नहीं डाला जाता
आम का अचार
छतों पर
इकट्ठा होकर
बूढ़े नहीं लड़ाते
आँगन में बैठकर
ईरान-तुरान की गप्पें
और तो और
घर के लोग ही
महीने में
एक-दो बार
साथ बैठते हैं
डाइनिंग रूम में
गिने-चुने संवाद लेकर।
६ फरवरी २०१२
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