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अभिव्यक्ति में विजय कुमार श्रीवास्तव 'विकल' की रचनाएँ

जीवन की साध
परिवर्तन
मधुहीन आज यौवन प्याला
मानवता की द्रौपदी
मुझे दिन में भी अंधेरा दीखता है
रात की दुल्हन
सात क्षणिकाएँ
हृदय वीणा को न जाने कौन झंकृत कर रहा है
 

 

मुझे दिन में भी अंधेरा दीखता है

जब सूरज बादलों से ढक जाता है
जब सूरज को राहु और केतु ग्रस लेते हैं
जब मेरी आँखों पर कोई पट्टी बाँध देता है
जब मेरे माता पिता मुझे छोड़ कर
इस दुनिया से चले जाते हैं
जब मैं अपनी बेटी को ब्याह कर
उसे ससुराल के लिए विदा करता हूँ
जब मेरी बेटी अकाल ही काल के गाल में समा जाती है
जब मेरा बेटा पढ़ाई से मुख मोड़ लेता है
जब मेरा भाई अपने व्यवहार से मुझे मर्माहत करता है
जब मेरे ताऊ मेरे चाचा प्यार का नाटक करते हैं
पर उनका ध्यान मेरी संपत्ति हड़पने पर लगा होता है
जब मेरा दोस्त संकट के समय मुझ से मुख मोड़ लेता है
जब मेरा पड़ोसी मुझ से बात नहीं करता
जिसको मैं बहुत चाहता हूँ
वह मेरी ओर से आँख फेर लेता है
जब मेरा बॉस मुझ से नाराज़ हो जाता है
जब मेरा ओबिडियेंट मेरी आज्ञा का पालन नहीं करता
जब मेरा राष्ट्रनायक आपात काल घोषित कर
अधिनायक बन जाता है
जब मेरे देश का प्रधानमंत्री ही भ्रष्टाचार में लिप्त लगता है
जब समर्थन दे रहा कोई नेता
स्वार्थ सिद्ध न होने पर
एक अच्छी प्रकार चल रही सरकार से
अपना समर्थन खींच
सरकार को अपदस्थ कर
राष्ट्र की अस्मिता को मिट्टी में
मिलाने की चेष्टा करता है
मुझे दिन में भी अंधेरा दीखता है
जब कोई आततायी किसी अबला को
सता रहा होता है
और लोग अपनी आँख को बंद कर
उसी प्रकार तटस्थ भाव से आगे बढ़ जाते हैं
जैसे द्रौपदी का चीर हरण होता देख
भीष्म पितामह और आचार्य द्रोण जैसे
सगे संबंधी महाबली महाज्ञानी
उस कुकृत्य को देख ते हुए भी
उसका विरोध नहीं करते

24 फरवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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