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अनुभूति में विजय राठौर की रचनाएँ-

कविताओं में-
असुरक्षित नहीं हूँ कदाचित
कलम की नोक पर
जब रोया एक बार
समय का पहिया

 

जब रोया एक बार

मेरे मुसकुराने पर प्रात:
अट्टहास किया सूरज ने
और भर दिया कोमल प्रकाश से
संपूर्ण सृष्टि को

उपवन में, मेरे हँसने पर
सहसा खिल उठीं कलियाँ
एक भीनी-भीनी सुगंध से भर गया
उपवन का कोना-कोना

मेरी हँसी से झनझना उठीं
वृक्षों की डालियाँ और वे
लुटाने लगीं अपना स्वत्व

मेरे प्रफुल्लित होने से
खिल उठी कमलिनी
कमल दलों ने अपनी पंखुरियों से
भर दिया सरोवर

मेरी हँसी से फूट पड़े झरने
नदियों में उठने लगीं बड़ी-बड़ी लहरें
पंछियों ने मिलाया मेरे सुर में सुर
और हवाएँ बतियाने लगीं मुझसे
सुख दुख की बातें

और जब रोया एक बार
बहरी हो गई दिशाएँ
पूरी पृथ्वी ने अनसुनी कर दिया
मेरा प्रलाप

१ सितम्बर २००८

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